हज़रत अमीरे मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु

हज़रत अमीरे मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु 


 अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु का मुख़्तसर तआरुफ़


हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ऊँचे रुतबे वाले सहाबी-ए-रसूल हैं।

*आप खुद भी सहाबी हैं।

*आपके वालिद-ए-मुहतरम हज़रत अबू सुफियान रज़ियल्लाहु अन्हु भी सहाबी हैं।

*आप वालिदा-ए-मुहतरमा हज़रत हिंदह रज़ियल्लाहु अन्हा भी सहाबिया हैं।

*आपकी बहन हज़रत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा सहाबिया भी हैं और हम मुसलमानों की अम्मी जान यानी महबूब-ए-ज़ीशान सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ौजा-ए-मुहतरमा भी हैं।

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चूँकि हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु हमारी अम्मी जान के भाई हैं, इसलिए उलमा-ए-किराम आपको ख़ालुल-मुस्लिमीन (यानी मुसलमानों के मामू जान) कहते हैं।


आपका नाम-ए-पाक: मुआविया।

कुनियत: अबू अब्दुर्रहमान, जबकि नासिरुद्दीन (यानी दीन के मददगार), नासिरुल हक़ (यानी हक़ के मददगार) आपके अलक़ाब हैं।

हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु प्यारे आका, मक्की मदनी मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एलान-ए-नुबूवत फ़रमाने से 5 साल पहले मक्का मुअज़्ज़मा में पैदा हुए।

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आपका क़द मुबारक दराज़ (यानी लंबा) था।

रंगत सफ़ेद और खूबसूरत।

शख़्सियत रूअबदार थी।

सर और दाढ़ी मुबारक में मेहंदी लगाया करते थे।

बहुत हिल्म वाले, बुर्दबार, बावकार, मालदार, लोगों में सरदार, करम फ़रमाने वाले और इंसाफ़ क़ायम करने वाले थे।

अल्लामा हुसैन बिन मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं: हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु रूअब व दबदबा वाले, बहादुर, सखी और बुर्दबार बादशाह थे।

हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने सुलह-ए-हुदैबिया के दिन यानी 6 हिजरी में इस्लाम क़बूल किया।

(फ़ैज़ान-ए-अमीर-ए-मुआविया, सफ़हा: 15-25 मुन्तख़िब)

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मुआविया नाम के मआनी


अरबी लुग़त की बड़ी ही मशहूर किताब है लिसानुल अरब; इसमें है:

एक सितारा है, जो रात के पिछले पहर चमकता है और बहुत रोशन और चमकदार होता है, उस सितारे को मुआविया कहते हैं।

(लिसानुल अरब, जिल्द: 15, सफ़हा:108 ब-तसर्फ़)


इस मआनी के लिहाज़ से निहायत रोशन और चमकदार किरदार वाला जो आदमी हो उसे मुआविया कहेंगे।

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प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की प्यारी आदत


बाज़ दफ़ा लफ़्ज़-ए-मुआविया के मआनी से मुताल्लिक़ शैतान वस्वसे दिलाता है कि इसका मआनी अच्छा नहीं है। इस ताल्लुक़ से एक ज़ाबिता याद रखिए! हमारे आका व मौला, मक्की मदनी मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आदत मुबारक थी कि किसी नाम का मआनी बुरा होता तो उसे फ़ौरन बदल दिया करते थे, मसलन:

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम पहले अब्द-ए-शम्स था, प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तग़य्युर फ़रमा कर अब्दुर्रहमान रख दिया।

(उसदुल ग़ाबा, जिल्द:6, सफ़हा:314, रक़म:6326)

एक सहाबी का नाम ज़ह्म (रुकावट डालने वाला) था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बदल कर बशीर (खुशखबरी सुनाने वाला) रखा।

(तिर्मिज़ी, किताबुस-सौम, बाब माजा फी फ़ज़लुस-सौम, सफ़हा:212, हदीस:764)

एक सहाबी का नाम बग़ीज़ (क़ाबिल-ए-नफ़रत) था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बदल कर हबीब रखा।

(उसदुल ग़ाबा, जिल्द:1, सफ़हा:409, रक़म:481)

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इसी तरह और कितने नाम हैं जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तग़य्युर फ़रमाए, ग़रज़; आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुस्तक़िल आदत थी कि बुरे नाम को बदल दिया करते थे। सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम में तक़रीबन 20 के क़रीब सहाबी वो हैं जिनका नाम मुआविया था।

(उम्दतुल क़ारी, किताबुल इल्म, बाब मन युरिदिल्लाहु बिह... अलख, जिल्द:2, सफ़हा:69, तहत हदीस:71)


और जहाँ तक बात हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की है, आप तो प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में रहा करते थे, एक बार नहीं, सैकड़ों बार ज़बान-ए-मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर लफ़्ज़-ए-मुआविया आया होगा मगर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस नाम को बदल नहीं फ़रमाया, इस से पता चलता है कि मुआविया नाम के मआनी बुरे हो ही नहीं सकते, ये अच्छे मआनी वाला लफ़्ज़ है।

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अल्लाह व रसूल मुआविया से मोहब्बत करते हैं


हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु बहुत शान वाले सहाबी हैं। तारीख़-ए-मदीना दमिश्क़ में है,

एक दिन प्यारे आका, महबूब-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुसलमानों की प्यारी अम्मी जान हज़रत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा के हाँ तशरीफ़ लाए, उस वक़्त हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु भी वहीं थे और आपकी प्यारी बहन यानी हज़रत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा उनके सर में कंघी कर रही थीं, बहन-भाई का ये प्यार भरा अंदाज़ देख कर

अल्लाह पाक के प्यारे नबी, मक्की मदनी, मुहम्मद अऱबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:


"ऐ उम्मे हबीबा! क्या तुम मुआविया से मोहब्बत करती हो?"


अर्ज़  किया: "ये मेरे भाई हैं, भला इन से मोहब्बत क्यों न होगी?"

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मालिक-ए-जन्नत, साहिब-ए-कौसर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:

"अल्लाह व रसूल भी मुआविया से मोहब्बत करते हैं।"

(तारीख़ मदीना दमिश्क़, जिल्द:59, सफ़हा: 89)


"ऐ उम्मे हबीबा! मुआविया से मोहब्बत करो! बेशक मैं मुआविया से मोहब्बत करता हूँ और मैं उस शख़्स से भी मोहब्बत करता हूँ, जो मुआविया से मोहब्बत रखता है..."

(तारीख़ मदीना दमिश्क़, जिल्द:59, सफ़हा: 89)

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